स्वामी विवेकानंद स्मारक:-
मेरे शालिय जीवन में हमें लोंग टूर में ले गये थे। हमारी टूर मुंबई से दक्षिण दर्शन फिर श्री लंका में जाना था। शुल्क था ₹६२५/_ जो आज के जमाने में एक दिन में खत्म हो जाता हैं। इतने पैसे में हमें विद्यार्थी अवस्था में महिने भर फिरना था। मुंबई से चैनई। रामेश्वरम, मदुराई, कन्या कुमारी, त्रिवेन्द्रम, धनुष कोड़ी फिर
स्टिमर से श्री लंका जाना था।
सभी का प्रवास वर्णन मैंने गुजराती में लिखा था। सभी को बहुत ही पसंद आया था। हमारे अध्यापक गण ने वह लेख पुस्तकालय के लिए ले लिया था।तब हमें खुशी होती है, किंतु इतनी समझ नहीं थी कि इस की ओर एक नकल हमारे पास संभाल कर रख लेते! अफसोस!!!
स्वामी विवेकानंद स्मारक जाने के लिए हमें बोट में बैठना था।
अरब सागर, बंगाल का उपसागर और हिंद महासागर तीनों सागर का संगम अद्भूत लगता था।
तीनों सागर का रंग भी जरा अलग अलग दिखता था। आछा कथ्थई, आछा हरा और आसमानी। वो समंदर की लहरों खुला आसमान । आसमान का भी एक अलग ही सौंदर्य था। हम नन्ही जान अपनी छोटी छोटी आंखों में कितना सौंदर्य भर सकते है? फिर भी इतना तो भर ही लिया था जो अभी तक मेरे मन मस्तिष्क में तैर रहे है। मेरी स्मृति में है। इस लिए मैं संस्मरण लिख सकी।अच्छा स्मरण यानी संस्मरण!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
7/11/2021.
