शिर्षक: स्वप्नशील शाम
1980 का वर्ष था। एक बार खग्रास सूर्य ग्रहण था। केवल एक ही चेनल वाले टीवी दूरदर्शन पर गुड्डी फिल्म दिखा रहे थे, ताकि लोग
अपने अपने घरों में बैठे रहे। ग्रहण के दूसरे दिन मेरे माता-पिता की लाडली गुड्डी का वाक् दान उसके पिता जी के मित्र ने फोन पर कर दिया। “मेरे मित्र ने अपनी बेटी आपको दे दी!!!” लड़के का संयुक्त बड़ा परिवार था।
सगाई की रस्म निभाने के लिए लड़का और उनकी माताजी हैदराबाद से मुंबई आ गये। लड़की और लड़के दोनों के नाना जी मित्रों थे। कन्या की माता अपनी होने वाली संबंधन को मिलने उनके पिता जी के घर गई। यहॉं,
लड़के की माता और लड़का के घर आने वाले हैं, ऐसा संदेशा आया। पहले तो फोन की भी इतनी सगवड नहीं थी। मेरे माता-पिता की लाडली गुड्डी को तो साड़ी पहनना भी नहीं आता था। उसने अपने पड़ोसी मौसी को बताया। पड़ोसी मौसी ने साड़ी पहना दी।
थोड़ी देर में लड़का उनकी बुआ और दोनों होने वाली संबंधन एक साथ घर में आ गए।
हैदराबाद का लड़का और मुंबई की लड़की दोनों को कहा गया,जरा बाहर जाके आओ। लड़की के घर के बिल्कुल करीब एक बाग में
दोनों परिचय विधि के लिए गये। दोनों को काफी संकोच हो रहा था। बाग के
एक दरवाजे से प्रवेश कर के जरा सी बात करके दोनों बाग के दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गये।
वो बाग का नाम एस. के. सकापाटिल उद्यान है। इस को जापानिझ गार्डन भी कहते है। बाग के सामने अरबी सागर है। मुंबई के नरिमाइन पोइंट और चौपाटी के बीच का विस्तार है। उस शाम सुंदर संध्या खिली हुई थी। संध्या का बिंब सागर अपने में प्रतिबिंबित करके
अपनी लहरों से चारों ओर फैला रहा था। वो शाम बड़ी स्वप्नशील थी।
अभी 41 सालों के बाद फिर से वह सुहानी शाम फिर से एक बार आयी।
कुछ सालों के बाद एक प्रौढ़ युगल अपनी दो गुड्डीयों की शादी कराके अपनी सबसे छोटी वाली गुड्डी को लेकर वह बाग में गये।
यह दिन फिर से अच्छी संध्या खिली थी। सागर फिर सुहानी संध्या के बिंब को अपने में प्रतिबिंबित करता था। लाडली गुड्डी ने अपने माता-पिता और अपनी भरपूर सेल्फीयॉं ली। तीनों ने जी भर के उस स्वप्नशील शाम के सौंदर्य का आनंद उठाया।
जीवन की संध्या पर आये उस युगल को अभी जाने की जल्दी नहीं थी।
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद