19/9/2022.
आभासी दुनिया के भी कई तरह के प्रकार होते हैं।
कयी सालों पहले चित्र कला विकसित थी।
लोग प्रत्यक्ष को चित्र में ढालतें थे।
आकाश वाणी होती थी,
कंस राजा को अपनी बहन देवकी जी के लग्न प्रसंग पर सुनाई दी थी।
दूर ध्वनि अर्थात टेलीपैथी थी,
किसी को अंतःकरण पूर्वक याद
किया जाता था, तो उस व्यक्ति तक
संदेश पहुंच जाता था,
फिर तरह तरह के संदेश वाहकों,
तैयार किये जाता था,
मनुष्य या पशु-पक्षी द्वारा संदेश
भेजा जाता था,
दूरदर्शन का सबसे पहला उदाहरण,
महाभारत काल में संजय को दिव्य ,
द्रष्टि मिली थी।
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फिर कलियुग में तो चारों ओर आभासी दुनिया छा गई है।
जब से थोमस अल्वा एडिसन ने,
वीजली की खोज की है…
तब से आभासी दुनिया,
ने गति धारण की है।
विद्युत बल्ब आभासी सूर्य,
ट्युब लाईट आभासी चंद्र,
रेडियो आकाशवाणी,
चलचित्र चित्रों की गति,
फोन -दूर ध्वनि,
टीवी -दूरदर्शन,
रेकोर्ड, कैसैट, सीडी, टेपरेकोर्डर-
आवाज संग्रह,
फ्रिज नकली- शीत प्रदेश,
वोशिंग मशीन -नकली रजक,
मिक्क्षर ग्राइन्डर- नकली मंथन,
और जब से कृत्रिम ग्रहों,
अवकाश में छोड़ा गया,
कोम्फयुटर लैपटॉप और मोबाइल,
मोबाइल तो चारों ओर जा गया है।
मोबाइल से तो पुरी दुनिया ,
बदल गई है।
पुरी दुनिया आभासी हो गई है।
मोबाइल से दुनिया छोटी हो गई,
मोबाइल से नजदीक वालें,
दूर हो गयें हैं!!!
दूर दूर वाले नजदीक आ गये हैं!!!
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अभी मानव मन भी आभासी दुनिया
का बड़ा हिस्सा बन गया है।
मानव स्वभाव भी आभासी हो गया है।
“हाथी के दिखाने के दांत अलग और चबाने के दांत अलग!!!”
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
29/3/2022.