मैंने सोचा एक फिल्मी गीत लिखुं।
जिस में, सुरीला मुखड़ा हो,
लयबद्ध तालबद्ध
अंतरा हो।

सागर सरिता,
वृक्ष लता
धरती आकाश
भौंरा कलि
राधेश्याम की
प्रित लिखुं ।
जितनी मेहनत
करनी पड़े
उतनी मेहनत करू,
व्याकरण शिखु
संगीत शीखु
मैं तैयार हूँ ।
पर एक फिल्मी गीत
जरूर लिखुं।
उत्तम गीत लिखकर
मैं रूपहरी जगत में,
अपने शहर का नाम;
सुवर्ण अक्षरों से लिखुं।
मेरे कितने प्रयास
कितनी मुश्किलें !
फिर भी
तृटीयाँ कसरे
अफ़सोस!!!
फिल्मी गीत नहीं
लिख शकी मैं।
फिर मुजे याद आया…
एक फिल्मी गीत
जो हो गया था तैयार
कुछ फिल्मों के नाम से
क्रमशः बोलने से !!!
मुजे शांति हुयी
आधुनिक फिल्मी गीत को, लिखने के लिए तो
कोई खास मेहनत
करने की जरूरत ही नहीं !!!
मुखड़ा अंतरा
छंद
सुर ताल लय
गालीयां !!!
आधुनिक फिल्मी गीत को हम मन ही मन में
गालीयां देते रहते हैं;
फिर भी
हम तालीयाँ
बजा बजा कर;
गीत को
मशहूर कर देते हैं ।
चारों ओर डी. जे. में;
गाना बजता रहता है…
भारी आवाज में
गीत के शब्दों को सुनना, सुनकर समजना…
यहाँ किसको फिकर हैं?
भावना मयूर पुरोहित
८/१/२०२०/