झर झर झर झरकरता बहता है झरना,
मीठा मीठा पानी लेकर चला झरना।
पहाड़ी कन्या जैसे उछलकूद, करता चला झरना।
पहाड़ी कन्या की पायल बजे छम छम,
झरना संगीत बजाकर चला रिम झिम।
पर्वतों से अपना रास्ता ढूंढ निकालकर
चला झरना।
नदी का बाल्य रूप झरना,
पर्वत एवं अपना दोनों का रुप बढ़ाता
चला झरना।
नदी बनकर सोलह श्रृंगार करके
पहाड़ी कन्या रूप झरना नदी बनकर
पीयामिलन की आस में आगे बढ़ता
चला झरना।
सागर में लीन होकर, फिर बारिश बनकर,
बन जायेगा फिर से एक नया झरना।
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
22//7//2021//
