अरे वाह मानव!!!
तेरा जीवन!!
आशा और निरासा से युक्त।
रंगीनी गमगीनी से युक्त।
सुख-दुख से युक्त।
चढा़व- उतार से युक्त।
मैं सोचती हूं,
आखिर ऐसा क्यों?
जिस दिन होता है तु,
सिद्धि के उच्चतम शिखर पर-
मान सम्मान किर्ती मिला तुजे,
चारोंओर
आदर सत्कार मिला तुजे,
जीना तब आशान्वित लगता है क्या?
जीना तब आनंदित लगता है क्या?
जीना तब सार्थक लगता है तुजे?
जिस दिन होता है तु,
विपत्तियों की गहरी खाई में…
हवामहल तूट जाते है तेरे?
अपमान घृणा मिलते हैं तुजे ?
घोर नैराश्य लगता है।
जीना तब निरर्थक लगता है क्या?
फिर मैं उलझती हूं,
यह जानने के लिए,
वास्तव में जीवन है क्या?
उत्तर मिल रहा है,
मुजे अंतर्मन से, जीवन तो-
“साॅंप -सीढ़ी का खेल है!!!”

भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद