जब मैं श्री गुजराती विद्या मंदिर हाई स्कूल मेंं अद्यापिका थी अभी मैं सेवानिवृत हूँ। मेरा मुख्य उद्देश्य यह था कि स्कूल समय पर पहुंचना। मुजे स्कूल के प्रति एवं स्कूल के सभी बच्चों के प्रति अत्यंत लगाव था। समाज सेवा की भावनाओं भी प्रबल थी। उस वक्त मेरे दिमाग में जो विचारधाराओं चलती रहती थींं, कुछ संस्मरणों याद आ जाया करते थेंं कुछ वाचन सामग्रियों से मनो मंथनों चलते रहते थेंं ।
प्रस्तुत हैं मेरी विचारधाराओं संस्मरणों का मनो मंथन :

सुबह होती थी , दिमाग में ,एक ही बात, धूमती रहती थी।
स्कूल समय पर पहूँचना।
स्कूल समय पर पहुँचना।
सुबह प्रातः कर्म के लिए लंबी कतार होती थी। फिर तीनों लड़कियों की
चोटीयाँ डालती थी…
चोटीयों डालतेंं समय, मन में खयाल आता था, “अरे!!! ये लड़कियाँ लडकेंं होती तो??? चोटीयाँ तो नहीं करनी पड़ती थीं!!!”
किंतु अभी तो…लड़के भी लंबे लंबे बालों को रखतें हैं!!! पोनीटेल बांधतें हैं!!! कानों में बालीयाँ पहनते हैं!!!
एक घर की प्रौढ़ा ,जो अभी अभी पंजाबी सुट पहनना सिखी थी।
वह अपना बांधनी कि डिजाइन वाला दुपट्टा ढूँँढ रही थी।
पहले के जमाने में, घर कि बहु रानीयाँ पंजाबी सुट कहाँ पहनती थीं??? वे तो अपनी प्रतिभाओं को घुंघटों में ही रखतीं थींं। बहुओं को घुंघटों में रहना पडता था। सर पर से जरा सा पल्लु सरका; तो दुनिया कि बातों को सुनना पडता था।
घरों कि बेटियाँ ड्रेस पहन सकती थीं ; लेकिन बहुओं को तो साडी ही पहननी पडती थींं।
अभी तो बहुएँ जिन्स भी पहनती हैं।
बांधनी का दुपट्टा ढूँँढने वाली महिला अपनी लड़कियों को पूछताछ करती थीं, किंतु दुपट्टा तो
लड़का लेकर गया था। दोस्तों के साथ नवरात्रि का डांडियाँ रास खेलने गया था। ‘ शेरवा�स्कूल समय पर पहूँचना
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
रचना 4/3/2020 से 21/3/2०2०/
दि. 4/9/2020/
नोंध: 2002 में यह कविता लिखी थी,
जब मैं श्री गुजराती विद्या मंदिर हाई स्कूल मेंं अद्यापिका थी अभी मैं सेवानिवृत हूँ। मेरा मुख्य उद्देश्य यह था कि स्कूल समय पर पहुंचना। मुजे स्कूल के प्रति एवं स्कूल के सभी बच्चों के प्रति अत्यंत लगाव था। समाज सेवा की भावनाओं भी प्रबल थी। उस वक्त मेरे दिमाग में जो विचारधाराओं चलती रहती थींं, कुछ संस्मरणों याद आ जाया करते थेंं कुछ वाचन सामग्रियों से मनो मंथनों चलते रहते थेंं ।
प्रस्तुत हैं मेरी विचारधाराओं संस्मरणों का मनो मंथन :
सुबह होती थी , दिमाग में ,एक ही बात, धूमती रहती थी।
स्कूल समय पर पहूँचना।
स्कूल समय पर पहुँचना।
सुबह प्रातः कर्म के लिए लंबी कतार होती थी। फिर तीनों लड़कियों की
चोटीयाँ डालती थी…
चोटीयों डालतेंं समय, मन में खयाल आता था, “अरे!!! ये लड़कियाँ लडकेंं होती तो??? चोटीयाँ तो नहीं करनी पड़ती थीं!!!”
किंतु अभी तो…लड़के भी लंबे लंबे बालों को रखतें हैं!!! पोनीटेल बांधतें हैं!!! कानों में बालीयाँ पहनते हैं!!!
एक घर की प्रौढ़ा ,जो अभी अभी पंजाबी सुट पहनना सिखी थी।
वह अपना बांधनी कि डिजाइन वाला दुपट्टा ढूँँढ रही थी।
पहले के जमाने में, घर कि बहु रानीयाँ पंजाबी सुट कहाँ पहनती थीं??? वे तो अपनी प्रतिभाओं को घुंघटों में ही रखतीं थींं। बहुओं को घुंघटों में रहना पडता था। सर पर से जरा सा पल्लु सरका; तो दुनिया कि बातों को सुनना पडता था।
घरों कि बेटियाँ ड्रेस पहन सकती थीं ; लेकिन बहुओं को तो साडी ही पहननी पडती थींं।
अभी तो बहुएँ जिन्स भी पहनती हैं।
बांधनी का दुपट्टा ढूँँढने वाली महिला अपनी लड़कियों को पूछताछ करती थीं, किंतु दुपट्टा तो
लड़का लेकर गया था। दोस्तों के साथ नवरात्रि का डांडियाँ रास खेलने गया था। ‘ शेरवा�
दोस्तों के साथ नवरात्रि का डांडियाँ रास खेलने गया था। ‘ शेरवानी वाला ‘
‘माँ शेरावाली ‘ बनने चला था!!!
नारीयों को अबलाओं मानने वालें,
पुरूष प्रधान समाज मेंं ; आजकल
नारियाँ हो गई हैं प्रबलाओं।
पुरुषों नारीत्व का अनुकरण कर रहें हैं। भारत में पहले एक ही महाराणा प्रताप थे। जिसके पास ‘ चेतक ‘ घोड़ा था। फिर समय का प्रताप था,
‘ चेतकों ‘ अनेकों थेंं ; क्योंकि बजाज वालों का स्कुटर था।
बजाज चेतक का खयाल आते ही, मैं सोचती थी…अरे!!! मुजे चेतक की सवारी आती होती थी, तो कितना अच्छा होता !!! न्युमाईस ( हैदराबाद मेंं होता एक वार्षिक प्रदर्शन) मेंं , ‘ मौत के कुआँ ‘ का खेल खेलती खिलाड़ी होती!!!
एक हाई जम्प या लोंग जंप लगाकर स्कूल समय पर पहुंची थी मैं( २)
पर हाय राम सुबह को शहरों मेंं, ट्राफिक की भरमार !!!
उतना बड़ा हाई जम्प या लोंग जंप कैसे करती थी मैं??? फिर कैसे
स्कूल समय पर पहुंचती थी मैं?
फिर सोचती थी मैं, अगर मैं नेता होती तो कितना अच्छा होता था?
मेरा अपना चार्टर हवाई जहाज होता था !!!
समय पर स्कूल पहुंचती थी मैं (२)
नेता बनना तो बडा आसान है !!!
पहले अभिनेता बन जाना !!! फिर नेता बन जाना !!!
कोई मुजे कुछ काम कहें तो कह देना, काम फिर कभी रहने दो मुजे नेता अभी !!! नेताओं तो घिरे रहते है चमचों चमचीओं से !!!
खुशामदें तो खुदा को भी प्यारी होती हैं । खुशामदों से नेताओं खुद को खुदा समजने लगतेंं हैं !!!
नेताओं को सत्ता का नशा चढ़ने लगता हैं। नेता कहे दिन तो दिन,
नेता कहे रात तो रात !!! चारोओर
हाँ जी हाँ !!! नेता का चार्टर हवाई जहाज हवा खाता रहता है ,
क्यों कि नेता तो अपने आप हवा में उड़ने लगता है !!! तब, समय पर कैसे स्कूल पहुंँचती मैं???
फिर सोचती थी मैं, सुना है हमने कि पहले के जमाने में दोस्तों के साथ नवरात्रि का डांडियाँ रास खेलने गया था। ‘ शेरवानी वाला ‘
‘माँ शेरावाली ‘ बनने चला था!!!
नारीयों को अबलाओं मानने वालें,
पुरूष प्रधान समाज मेंं ; आजकल
नारियाँ हो गई हैं प्रबलाओं।
पुरुषों नारीत्व का अनुकरण कर रहें हैं। भारत में पहले एक ही महाराणा प्रताप थे। जिसके पास ‘ चेतक ‘ घोड़ा था। फिर समय का प्रताप था,
‘ चेतकों ‘ अनेकों थेंं ; क्योंकि बजाज वालों का स्कुटर था।
बजाज चेतक का खयाल आते ही, मैं सोचती थी…अरे!!! मुजे चेतक की सवारी आती होती थी, तो कितना अच्छा होता !!! न्युमाईस ( हैदराबाद मेंं होता एक वार्षिक प्रदर्शन) मेंं , ‘ मौत के कुआँ ‘ का खेल खेलती खिलाड़ी होती!!!
एक हाई जम्प या लोंग जंप लगाकर स्कूल समय पर पहुंची थी मैं( २)
पर हाय राम सुबह को शहरों मेंं, ट्राफिक की भरमार !!!
उतना बड़ा हाई जम्प या लोंग जंप कैसे करती थी मैं??? फिर कैसे
स्कूल समय पर पहुंचती थी मैं?
फिर सोचती थी मैं, अगर मैं नेता होती तो कितना अच्छा होता था?
मेरा अपना चार्टर हवाई जहाज होता था !!!
समय पर स्कूल पहुंचती थी मैं (२)
नेता बनना तो बडा आसान है !!!
पहले अभिनेता बन जाना !!! फिर नेता बन जाना !!!
कोई मुजे कुछ काम कहें तो कह देना, काम फिर कभी रहने दो मुजे नेता अभी !!! नेताओं तो घिरे रहते है चमचों चमचीओं से !!!
खुशामदें तो खुदा को भी प्यारी होती हैं । खुशामदों से नेताओं खुद को खुदा समजने लगतेंं हैं !!!
नेताओं को सत्ता का नशा चढ़ने लगता हैं। नेता कहे दिन तो दिन,
नेता कहे रात तो रात !!! चारोओर
हाँ जी हाँ !!! नेता का चार्टर हवाई जहाज हवा खाता रहता है ,
क्यों कि नेता तो अपने आप हवा में उड़ने लगता है !!! तब, समय पर कैसे स्कूल पहुंँचती मैं???
फिर सोचती थी मैं, सुना है हमने कि पहले के जमाने में