आज सुबह जैसे ही मोबाइल के टेम्परेचर मीटर को देखा तो 6 डिग्री देखकर ताज्जुब लगा क्योंकि बहुत वर्षों बाद अब ठंड दिखाई दे रही थी आसमान से लेकर जमीन तक ओस की एक सफेद चादर चारो ओर दिखाई दे रही थी जरा सी दूर देखना भी मुश्किल हुआ जा रहा था घर से बाहर निकलने के पहले इनर जरकिन ,टोपा, मोजा, दस्ताने आदि पहिनने के बाद भी ठंड लग रही थी ,,, ऐसा नही था कि ठंड केवल सिरोंज में ही थी कई सारे स्थान तो ऐसे भी होंगे जहां टेम्परेचर माइनस में भी होगा और वहां लोग भी रहते होंगे किन्तु बड़ती ठंड के अनुसार उनके पहिनावे में टाइम टेबल सोने उठने में और खान खुराक में अंतर आता जाता है
ठंड के बड़ते क्रम में लोग अपने कपड़ों की संख्या बड़ाते जाते है वही एक संत जो निर्ग्रन्थ दिगम्बर अवस्था मे रहते हुए अपनी साधना से अपनी उम्र को पछाड़ने का प्रयास कर रहे है यानि 78 वर्ष की उम्र के आसपास आते आते एक साधारण मनुष्य ठंड के दिनों में घर से बाहर नही निकलता बल्कि घर मे भी पूरे कपड़ो को पहिनने के बाद भी रजाई ओढ़ कर बैठा रहता है, ऐसे में वही संत अपने शिष्यों के साथ कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र की वंदना कर रहे हैं,पहाड़ पर शरीर जमा देने बाली शर्दी में
हम आचार्य श्रेस्ठ गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज की बात कर रहे है जो इतनी कड़ाके की ठंड में भी दिगंबर अवस्था को धारण किये हुए किसी सिंह के समान विचरण कर रहे है जिस उम्र में लोग थक जाते है उसी उम्र में वे संघ नायक बनकर ज्ञानार्जन कराते हुए साधना की प्रखरता को अत्यंत प्रगाढ़ बना रहे है दिन तो जैसे तैसे कट जाता है पर रात्रि में विश्राम करना बड़ा ही मुश्किल वाला काम है क्योंकि आचार्य महाराज ना तो चटाई बिछाते है और ना ही ओढ़ते है और अनजाने स्थानों पर रात्रि विश्राम के लिये मिलने वाला कमरा ऐसा नही होता जिसमे बगैर कपड़ो के लकड़ी के तख्त पर सोया जा सके किन्तु अपनी साधना के प्रभाव से स्वयं आचार्य महाराज विश्राम करते है बल्कि पूरा संघ भी वैसी ही प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूलता मानते हुए विश्राम करता है
सुबह साढ़े छह बजे जहां पूरे शरीर को ढक कर खुली सड़क पर चलना मुश्किल होता है वे नंगे पैर और खुले शरीर चलते दिखाई दे तो कोई आश्चर्य की बात नही वे किसी अतिथि के समान कही भी कभी भी पहुच जाते है इसलिये यह भी सम्भव नही कि उनके पहुचने के पूर्व ही अनुकूलता उपलब्ध करा दी जाए बल्कि मुझे तो ऐसा लगता है प्रतिकूलताओ में रहते हुए अनुकूलता महसूस करना ही उनकी साधना का अंग है
जगत के श्रेस्ठ आचार्य होने का गौरव जिनके नाम है ऐसे संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों मे शत शत नमन🙏
सभी दिगम्बर जैन मुनीयों और उनके तप और त्याग को नमन🙏
Naveen Shrijee Jain की फेसबुक वॉल से