घर
घर एक आह्लादकारी शब्द है,
पशुओं पक्षियों जीव-जंतुओं,
सभी का एक घर होता है,
मानव का भी घर होता है,

घर जैसी शांति कही भी नहीं होती है,
घर घर ही, धरती का अंत एवं धरती का
आरंभ भी हमारा घर ही है, घर एवं मकान
में फरक होता है, मकान का अर्थ चार दिवारों,
घर में मधुरता रहनी चाहिए, हम हमारे घर में,
जाकर बहार पहने हुए कपड़े बदलते हैं, अर्थात
बाहर की चिंता बाहर के कपड़ों के साथ, बाहर
ही छोड़ देनी चाहिए, घर में अपनापन लगता है,
कभी कभी हम बाहर पंच तारक होटल में चाय
पीते हैं फिर भी हमें अपने घर में अपने प्रियजनों के हाथों की चाय अधिक प्यारी लगती है, घर में हमें खुशी मिलती हैं, घर घर ही है,
पहले घर में एक देहलीज होती है, घर की बातें घर में ही रहती थी, अभी दहलीज गायब,
घर की बातें बाहर!!! बाहर की व्यथा अंदर,घर
को घर ही रहने देना चाहिए सार्वजनिक नहीं,
घर में एक मोभ होता है घर का मुखिया मोभ कहलाता है, घर का मुखिया समझदार होना चाहिए, घर में स्त्री वर्ग में आपस में तालमेल
होना चाहिए, घर में बहन बेटी बहू में फरक
नहीं होना चाहिए, संतानें आज्ञाकारी होने चाहिए, घर में आपस में पक्षपात नहीं होना चाहिए, सभी को एक दूसरे पर प्रेम रखना चाहिए, अपना दायित्व समझना चाहिए,
सब के कामकाज की कदर होनी चाहिए,
बच्चों को प्यार बड़ों को आदर, सम वयस्कों
में मित्रता, घर का आर्थिक संतुलन सुचारू रूप से संभालना , घर की मर्यादा संभालना,
यदि ऐसा माहौल है तो धरती का स्वर्ग घर है,
यदि घर में सभी आपस में एक-दूसरे का विरोध
करें, एक- दूसरे का अपमान करें, एक- दूसरे से द्वेष करें, घर में संस्कार नहीं, आदर सत्कार नहीं तो वह घर घर नहींं, किंतु वह केवल एक मकान
है, जिसमें चार दिवारों को जोड़ दिया गया हो!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद