मजदूर मजबूर,
धनिक बुलाते श्रमिक,
मजबूर मजदूर,
कद काठी से शसक्त,
कभी हो अशक्त,
फिर भी मजदूर है मजबूर,
मजदूरनी भी मजबूर,
क्यों कि घर है काफी दूर,
मजदूर मजदूरनी दोनों के,
बच्चों को भगवान पाल लेते हैं,
खुले में भरपूर सूर्य प्रकाश,
लेकर खुली हवा खाकर,
अपनी माता का पयपान करके,
और मिट्टी में खेलकर,इतने मजबूत
हो जातें हैं कि एक अकेला, दस पर भारी,
पहले तो मजदूर अपने बच्चों को,
पढ़ा लिखा नहीं सकते थे,
बाल मजदूरको भी बड़ा होकर,
मजदूर ही बनाया जाता था।
किंतु अभी तो, मजदूर लोग जागरूक हो गये हैं,
अपने बच्चों को पढ़ाते हैं,
मजदूर और मजदूरनी भी,
रात्रि वाला में जाकर,
पढ़ाई करतें हैं,
मजदूरनी भी जब मजदूरी
नहीं मिलती तब छोटे मोटे
काम कर लेती है,
मजदूर ने भी आज कल,
देशी दारू पीना छोड़ दिया है,
पहले तो दूसरे बिच वाले,
मजदूर को दारु पीला कर,
मजदूर नी पर बुरी नजर डाला , करते थे , मजदूरनी के सिने से,
लगा बच्चा मन ही मन में ,
सोचता होगा, कब मैं बड़ा होगा और कब मैं मेरी माता के दुश्मनों से,
बदला लूंगा!!!
आजकल पाठशालाओं में,
मध्याह्न भोजन मिलता है,
कुछ श्रमिकों के बच्चे तो,
पाठशाला में पढ़ाई से ज्यादा
भोजन मिलता है , इस कारण
पाठशाला में जाते हैं,
फिर धीरे धीरे पढ़ाई पर भी,
ध्यान देने लगते हैं।
पढ़ाई से दुनिया दारी समझने
लगते हैं,
पढ़ाई करके
अपने पिता पर भी होता अन्याय
देख लेकर, समझ कर, पिता को भी
न्याय दिलाता है, पहले तो बीच वाले
मजदूर के पास कम दाम में,
दुगनी मजदूरी करवा लेते थें।
पहले तो मजदूर कच्ची झोंपड़ी में
रहते थे, अभी तो वो लोगों को
पक्के मकान मिल रहें हैं।
अभी तो जीरो अकाउंट पर,।
बेंक में खाता खुलता है,
मजदूर केवल एक ही नहीं होते
जो श्रम करके धन अर्जित करते हैं,
ऐसे भी कयी लोग होते हैं,
जो, श्रम करके अपना वेतन नहीं लेते, किंतु चूपचाप श्रम करते ही रहते हैं!!!
हम सभी एक तरह के मजदूर ही हैं,
हम सुबह से उठकर अपने घर में,
अपने समाज में और भी कई
महत्वपूर्ण स्थानों पर श्रमदान
करते हैं किंतु अवेतनिक कार्य
करते हैं!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
5/5/2022.