अरण्य, अभ्यारण्य से हटकर करेंगे,
हम शहर में बाघ दर्शन!
पहले तो बाघ दर्शन के लिए था अरण्यों। अभी हैं अभयारण्यों।
हमने प्रकृति से अभय होकर,
अरण्य को रण बनाया। रण में कृत्रिमता से, अभयारण्य बनाया।
बाघ दर्शन के लिए अभ्यारण्य,
‘रणथंभोर’, ‘सुंदरवन’
अभ्यारण्यों नकली अरण्यों।
प्राकृतिक नहीं किंतु कृत्रिम, ‘सुंदर वन’ जो रण नहीं है। ‘ रण थंभोर ‘ है।
पर्यावरण सुंदर होता हैं, होता रहेंगा_
वन से,रण से नहीं।
भाषाओं भी हों जाती हैं रण!!! अगर न होता , सही उच्चारण एवं व्याकरण का आवरण!!! आजकल चल रहा है दौर,वनविहार
करने का जैसे , ‘ सुंदर वन ‘!!!
पूर्व तो होता था, स्वयं अरण्य गमन।
वय में ,’ वन प्रवेश ‘ के समय , जो पहले कहलाता था, ‘ वान प्रस्थाश्रम’
आजकल , बड़े बुजुर्गो को भेजा जाता है, वृद्धाश्रम में !!! यह दु:खी
अवस्था से भरी व्यवस्था हैं ।
अभी, युवा पीढ़ी को वनविहार
के लिए, जब तन सक्षम, मन कमजोर पड़ जाता है, धन संघर्ष से।
जब मन मजबूत हो जाता हैं,
जीवन भर की कमाई की बचत से,
संचित धन से,
तब कमजोर पड़ जाता है तन,
तन झुक जाता है, मजबूर हो कर,
समय को प्रणाम करते करते!!!
***
हो जाता है शहरों में कभी बाघ दर्शन!!! बिन प्रवेश किये , वनों में, अरण्यों में,
या तो, रणथंभोर के सुंदर वन
जैसे, अभ्यारण्यों में !!!
आजकल बाघ दर्शन होता हैं…
प्राणी संग्रहालयों में, कुछ सालों पहले था सर्कसों में,
किंतु,
ईमानदार, गभरु, कमजोर विद्यार्थीयों को डर से हो जाता हैं,
बाघ दर्शन परीक्षाओं में, परीक्षा खंड में, जब परीक्षकों कक्ष में,
धूमतें हैं।
वो विद्यार्थियों को लगता हैं,
पिंजरें में, बाघ चक्कर काटता हैं!!!
कभी, मंच पर माईक खराब, या तो, रेडियो में स्टेशन नहीं पकड़ा जाता,
तब श्रोताओं को लगता हैं, जैसे,
बाघ ड़हाडता हों!!!
बस डिपो में, लाईटों जल रही हैं,एवं मशीबन चल रहा हैं किंतु,
बसों रुकीं हुई होती हैं,
ऐसे में ,शहरी जनों को लगता हैं,
जैसे तेज रफ़्तार से दौड़ कर आकर, थक कर बैठा हुआ
बाघ ड़हाडता हुआ, ताक रहा हैं,
शहरी जनों को !!!
इस प्रकार हों जाता हैं,
शहरों में बाघ दर्शन!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद तेलंगाना
29/7/2022.
