एकबार एक बडे परिवार में एक प्रासंगिक भोजन समारंभ था. तीन बहुरानीयाँ तरकारीयाँ एवं फलों सुधार रहीं थीं.
छोटी बहुरानी खीरा, तुरैया सुधार रहीं थी. खीरा तुरैया कड़वे तो नहीं? यह बाबत ज्ञात करने के लिए उसे चखना पड़ता हैं. खीरा को उपरसे और नीचे से थोड़ा सा हिस्सा काटना पड़ता हैं. छोटी बहुरानी थोड़ा सा टुकड़ा काट कर फेंकने में डाल देती थी.यह बाबत पास में खेलते हुए एक बच्चे के ध्यान में आयी. उसने यह बाबत का तात्पर्य पूछा.”कड़वाहट दूर करने” उसे उत्तर मिला.यह बाबत बालमानस में वस गई.
मजली बहुरानी मीठे फलों को सुधार रही थी।केले,पपिता, खरबुजा,तरबुजा ,दराख़ द्राक्ष,चीकु,आम, जामुन,गन्ना,स्ट्रोबेरी, लिची,पिच,सफरजन, मोसंबी, नारंगी,सीताफल,अनन्नास,अंजीर,कीवी ,
मीठे बैर आदि…मजली बहुरानी को मस्ती
सुझी। वह कहने लगी,”अरे! यह फलों को
भी चखना पड़ता हो तो ? कितना मज़ा आता!! कलियुग में अतिथि देवो भव: के
हिसाब से में राम भक्ततो नहीं , किंतु राम भक्त शबरी की परम भक्ताणी जरूर बन जाती!!!
राम सैनिक वानर की न्याय करने की कहानी जैसे, सभी फलों को एक समान काटने के लिए,जो टुकड़ा बड़ा हो उसे काटकर छोटा कर देती!! फिर छोटा टुकड़ा बड़ा हो जाता!!
सभी फलों को बराबर चख़ देती!! मैं धन्य हो जाती!! सभी फलों के टुकड़े को एक समान करने का न्याय करते हुए मैं अपने आप को निहाल कर देती!! मुजे कितना मज़ा आता!!यह बात सुनकर बड़ी जेठानी बोली,”तब तो तेरा आज का भोजन फलाहार ही हो जाता!! फलों सुधार ने के पात्रों में कुछ भी नहीं बचेगा!! केवल बीजों,गुटलीयॉ, छिलके
आदि बचेगा!!”
सबसे बड़ी बहुरानी करेले सुधार रही थी.
भरा हुआ करेले बनाने के लिए.बड़ी जेठानी
को करेले बिल्कुल पसंद नहीं.स्वादानुसार
करेले वैसे ही कड़वे होते हैं.फिर वह कड़वे
हैं या मीठे? यह चखने का सवाल ही नहीं होता!! करेले सुधार रही जेठानी का स्वभाव कटु सत्य का मुंहतोड़ जवाब देनेका था. यह कारणोंसर उनकी भाषा अधिकतर कड़वी बोली मैं रहती.मजली बहुरानी
अपनी जेठानी को थोड़ा छेड़ने के लिए और थोड़ा प्यार से कहती है,”अच्छा है न भाभी जी आप को करेले पसंद नहीं है, वरना करेले खा कर आपकी वाणी और कड़वी हो जाती! वैसे भी आप अपनी कड़वी बोली के लिए काफी मशहूर हो! आप करेले खाते तो आप की वाणी और कड़वी हो जाती! फिर हमें आप के और कटु वाक् बाण सुनने पड़ते!”
दुनिया दारी से दूर, भोले भाव से युक्त छोटे बालक के बालमानस में,खीरा ककड़ी चखकर,उपर नीचे का थोड़ा सा टुकड़ा फेंक देने की बाबत इतनी सटीक बैठ गई थी की बालक इस से प्रभावित हो गया था.बच्चे कब बड़ों की बात सुन लेते हैं,सुनकर अपने दिमाग में पकड़ लेते हैं, यह बाबत हमें मालूम नहीं पड़ती.बच्चे को इतना मालूम है कि जीभसे हम बात कर सकते हैं.बच्चा पूछता है,”जिस तरह हम खीरा ककड़ी में से थोड़ा सा टुकड़ा काट कर फेंक देते हैं, ठीक उसी तरह कड़वी जीभ में से थोड़ा हिस्सा काटकर नहीं फेंक सकते?” बालक भी कभी कभी ऐसे सवाल पूछ लेता है, जिसका जवाब देने में हम असमर्थ हो जातें हैं.फिर उस बालक को समझाया गया ,”नहीं जिभ में थोड़ा सा टुकड़ा हम नहीं काट सकते है.जब कभी हमें कुछ लगता है, तो हमें कितना दर्द होता है,ठीक उसी तरह जिनकी कड़वी जीभ रहती है, उसे काटने पर दर्द होता है.”
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
13/6/2020/
