आग कभी लग जाती है शरारों से
मिल जाते हैं मोती भी किनारों से

जो काम आए थे जीवनभर सब के
खुश्बू आती रहती है उन मज़ारों से
छोड़ नहीं सकता घोसला पुराना
इश्क़ हो गया है सारी दीवारों से
जब ढूंढता हूं यादें अलमारियों से
निकल आते हैं सूखे पत्ते किताबों से
कुछ नहीं देख सकते आप को देख
तीर चलते हैं निगाहों के हिजाबों से
मुझे पसंद है हर फूल इस बाग़ का
बनाया है इसे मैने अपनी बहारों से
पूजन मजमुदार ०५/११/२०२२