पांच हजार वर्षो पूर्व, राधाकृष्ण खेलते थे होली, सोने की पिचकारियोंसे,
किमती द्रव्यों से, जैसे कि अबीर-गुलाल,
केसर-चंदन, अंबर- कस्तुरी ,पलास से ।
टेसुओं जब खिलते थे, अंगार जैसे चमकते थे, इसलिए पलास कहलाते हैं ।
अभी भी सभी भारतीयोंको, चाहे भले ही वे परदेस में रहते हों, अमिट प्रतिमा अंकित हैं, सभी के दिलों में, राधाकृष्ण की, होली की!!!
लोग अभी भी होली खेलते हैं, राधाकृष्ण को याद कर के। अभी पांच हजार वर्षो के बाद, होली खेलने के लिए, किमती द्रव्यों गायब !!! हाँ, मंदिरों में कीमती द्रव्योंसे होली खेली जाती हैं। बाकी अभी-अभी तो लोग होली खेलते हैं, खतरनाक, जानलेवा, नकली राशायणिकों से!!! आजकल तो, पलाश कम दिखतें हैं, कुदरत के कोप से, पलाश जल गया!!!
कुछ सालोंसे लोग, नैर्सगिक रंगोंसे
होली खेलते हैं।
होली के त्योहार का, प्रचार प्रसार
फिल्मों, रेडियो, टी.वी आदि माध्यमों से भी अधिक हुआ हैं।
फिल्मों बनानेवाले, कुछ समय के अंतराल पर अपनी फिल्मों में एकाध होली गीत,
डालकर अपनी फिल्म को मशहूर कर लेते हैं। फिल्मी होली गीतों में पुकार लेते हैं, होली हैं, होली हैं, होली हैं!!!
हाँ हमें मालूम है कि, होली-धुलेटी के दिन, होली ही होती हैं, दिवाली नहीं होती!!!
होली के दो दिन रेडियो पर भी, होली संबधित, एक से बढ़कर एक गाने आते थें। होली के त्योहार का, मजा आ जाता था!!!
पिछले दो सालों से, होली का त्योहार
मनाने की मनाही हैं। कोरोना के कारण।
पिचकारियों की बनावट से, प्रेरणा लेकर,
पिछली सदी में, वैज्ञानिकों ने खोज की थी, इंजेक्शन की सिरिज की!!!
यह साल कुछ लोगों ने होली खेली नहीं,
किंतु होली झेली थी!!!
प्लास्टिक की इंन्जेकशन की सिरिंजसे,
टीका लेकर!!!
प्रभु से प्रार्थना है कि हमारा देश फिर से,
ऐसा बनादे कि हम आपस में,
सोने की पिचकारियों से होली खेल सके!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदर
