विश्व भाषा एकेडमी द्वारा आयोजित परिचर्चा – “सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम- कारण और निवारण”:- भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद तेलंगाना.
इस समस्या का मुख्य कारण है नई और पुरानी पीढ़ी के बीच विचारों का अंतर। यह अंतर तो सदियों से चला आ रहा है। वो समाज सभ्य ही कैसे कहलायेगा जहां वृद्धाश्रम होते है। कारण जो भी हो वृद्धाश्रम समाज के लिए है तो शर्मनाक। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। आखिर
समाज में वृद्धाश्रम की जरूरत ही क्यों है?
जीवन की चार अवस्थाएं होती हैं। जैसे- बचपन, जवानी, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि
हमारा जीवन चार आश्रमों में विभाजित है- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम।
पहले बाल्यकाल से यौवन काल तक ब्रह्मचर्य आश्रम जिसमें विद्यार्थी अभ्यास करते। फिर शादी करके गृहस्थ आश्रम। इसके बाद वानप्रस्थ आश्रम। जीवन का आखरी पड़ाव है संन्यास आश्रम और वृद्धावस्था।
पहले वानप्रस्थ आश्रम आने के वक्त लोग सांसारिक बातों को धीरे धीरे मन से हटा लेने का प्रयास करते थे। अपने बच्चों के गृहस्थ आश्रम में अधिक दखलंदाजी नहीं करते थे। इसलिए युवा पीढ़ी और प्रौढ़ावस्था में अधिक अंतर नहीं होता था। आजकल माहौल बदल रहा है। जमाना बदल गया है। मकान छोटे हो गये हैं। मानव के दिल छोटे हो गये हैं। मंहगाई बढ़ गई है। जीवन में संतोष नहीं रहा है। विदेश जाने का मोह या फिर विदेश गए हुए वापस नहीं आ सकते। वो यहां पैसे भेज देते हैं। ऐसा समझ लेते हैं कि पैसे भेजे तो माता पिता की सेवा हो गई। किंतु वृद्धावस्था में बुजुर्गो को
स्नेह अधिक चाहिए।
हमें प्रोढावस्था से ही थोड़ी सी सावधानी बरतनी चाहिए। युवा पीढ़ी का दिल जीत लेने चाहिए। सभी पुत्र कुपुत्र नहीं होते हैं और ना ही सभी माता पिता कुमाता-कुपिता होते हैं। दोनों पीढ़ियों में आपसी तालमेल रखना चाहिए।
यह विषय गहन है। गहरा चिंतन मांगता है।
बुजुर्गों को ंं अपने आपको व्यस्त रखना चाहिए। अपनी उम्र के लोगों के संपर्क में रहना चाहिए। अपने सिद्धांतों को जबरन अन्य पर थोपना ठीक नहीं है।
घरेलू मनमुटाव आपस में ही निपटाया जा सकता है। दोनों पीढ़ियों में इतनी समझ आ जाए कि हमें अपने वाले ही काम में आयेंगे। वृद्धों को वृद्धाश्रमों में भेजना या घर से तंग आकर वृद्धों का स्वयं वृद्धाश्रम में चले जाना जरा दुःखद् बात तो है। जरा का संस्कृत में एक अर्थ वृद्धावस्था भी है।
जरा में जरा सावधानियां जरुरी है।
हमारी वृद्धावस्था को सुखद बनाने के लिए हमें युवावस्था और प्रोढ़ावस्था से ही प्रयत्न करना चाहिए।