
रजनी माता ने काली चादर ओढ़ ली है।
सूरज ने अपनी लालिमा छोड़ दी है।
पीला-नीला, लाल – हरे, हीरा-पन्ना,
मोती – माणिक एक एक करके,
जेवरात काली चादर को सजाने लगते हैं,
शशि चंद्रहार बनकर कौमुदी फैलाने लगते हैं,
रजनी गंधा, श्वेत पुष्प खिलने लगते हैं ;
अपनी खुश्बू महकाने लगते हैं।
जंगल में निशाचर जानवरों घुमने लगते हैं,
शहर में गुंडा तत्व फिरने लगते हैं।
सज्जन अपने घर में जल्दी पहुंच जाते हैं।
रात्री समय की पारी वालें दफ़्तर
एलईडी ब्लब से चमकने लगते हैं,
आसमान के सितारे और शहरी दफ्तर
की रोशनी प्रतियोगिता करने लगती है,
बडें शहरों में तो विभावरि को रोज दिवाली!
गंगा नदी, जमना नदी दीपमालासे
संध्या आरती के समय सजने लगती है।
शहर में मध्य रात्रि पूर्व
नाइट क्लब में, नियोन लाईट चमकने लगती है,
जूआँ, शराब, शबाब, चोरी, काले धंधे आदि
बदी पनपने लगती है,
फिर भी निशा में, यामिनी में कुछ अच्छे काम भी
होते है, विद्यार्थी अभ्यास करते है ,
साधु-संत ईश्वर स्मरण करते है,
रात पारी वाले अपने-अपने काम, वफादारी पूर्वक करते रहते है,
सैनिक सीमा पर पहरा देते है इसलिए हम
शांति से सो सकते है,
हम सो गए हो, किंतु हमारी साँसें चलती रहती है!!!
दिल धड़कता रहता है,
यह दुनिया चलती रहती है!!!
क्योंकि रात्री में ईश्वर नहीं सोता!!!
यदि ईश्वर सो गया तो, यह सकल विश्व सदा के लिए सो जायेगा!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद