पराक्रम अर्थात पराक्रमी साहसी वीरों की गाथा,
गुजराती में एक लोकगीत है,” जननी जणजे भक्त जन, का दाता का शूर, नहीं तर रहेजे वांझणी मत गुमावीश नूर”
अर्थात लोक कवि भारत की माताओं को कहते हैं,
हे जननी तू पुत्र जणे तो वह पुत्र भक्त जन होना चाहिए ,या पुत्र दानवीर होना चाहिए, यह दोनों
नहीं तो शूर या वीर
पूत्र को जण, वीर पुत्र जो बहादुर हो पराक्रमी हो।
यदि ऐसा पुत्र न हो तो
कोई अभक्त, कृपण, या कायर हो तो ऐसा पुत्र जणने के बजाय तो तू
वांझ रहे वहीं अच्छा है।
कुपुत्रों के लिए तू अपना नूर नहीं गंवाना।

पराक्रम एक ऐसी शक्ति है,
जो माता अपने पुत्रों में ,
जन्म जात भर सकती है,
हमारे देश में तो कयी ,
पराक्रमी माताओ ने अपने
संतान में बचपन से ही
पराक्रम भरा है,
यहॉं पुत्र का अर्थ केवल ,
लड़का ही नहीं लड़की भी,
हो सकता है। सिर्फ संतान
पंजाबी भाषा में पुत्री को भी पुतर ही कहते है। यह बाबत सराहनीय है।
पराक्रम एक महत्वपूर्ण
सिद्धि है, पराक्रम में ही
अपने वालों की रक्षा करना, अपने वालों के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना अपनी जान न्यौछावर कर देना।
हमारे देश की माताओं ने,
कयी महा पराक्रमी बेटों को जन्म दिया है, हमारे देश में पहले से पराक्रम
को प्राधान्य दिया गया है।
पराक्रम यानी सोच समझ कर बहादुरी और साहस
दर्शाना
फिर भी
पराक्रम यानी पराक्रम,
उसका कोई पर्याय नहीं।
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद